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प्रसन्नता के रथ पर सवारी के लिए अपनाएं उत्तम आर्जव धर्म



आज का धर्म उत्तम आर्जव

जीवन हमेशा प्रसन्‍नता के रथ पर सवार हो, खुशियों का दामन ना छोडे इसके लिए दसलक्षण धर्म का तीसरा कदम यानी उत्तम आर्जव धर्म अपनाना अत्‍यंत आवश्‍यक है। हमारे आचार्यों ने मन, वचन और काय से सात्विक व्यक्ति के आचारण को आर्जव धर्म माना है। जब मनुष्य का मन, वचन और काय किसी एक कार्य में एक साथ लग जाए तो समझ लेना चाहिए कि उसके जीवन में आर्जव धर्म का प्रवेश हो गया है। समस्‍त शुभ-अशुभ कर्म का बन्ध भी मन, वचन और काय ही होते हैं। जब व्यक्ति मन, वचन और काय को शुभ कार्य में लगाता है तो सुख, शांति और समृद्धि का अनुभव करता है वहीं जब अशुभ कार्य में मन लगाता है तो दुख, क्लेश का अनुभव करता हुआ मानसिक संतुलन खो बैठता है। इससे भी कहीं अधिक जब शुभ -अशुभ कार्य को छोड स्‍वयं मे स्थिर हो जाता है तो वह परमात्मा बन जाता है। आर्जव धर्म के अभाव में ही व्यक्ति मानसिक रोगों से घिरता है। सही मायने में वर्तमान में जीवने वाला व्‍यक्ति ही आर्जव धर्म को स्पर्श कर सकता है। आज का जाप

ऊँ ह्रीं उत्तम आर्जवधर्मांगाय नम: 16 सितम्बर,2018

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