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ऐसे सार्थक होगा भगवान महावीर का जन्म कल्याणक महोत्सव

मुनि पूज्य सागर महाराज


भगवान महावीर का जन्म कल्याणक महोत्सव में हम कुछ ही दिनों में मनाने जा रहे हैं। हर साल इस अवसर पर हम उनकी पूजा करते हैं, अभिषेक करते हैं, भव्य जुलूस निकालते हैं। इस वर्ष भी हम शायद ऐसा ही करेंगे लेकिन इसके साथ हमें और क्या करना चाहिए, यह भी हमारे लिए सोचने का विषय है। अगर हम इतिहास और शास्त्रों पर नजर डालें तो हम पाएंगे कि भगवान महावीर के जन्म कल्याणक की जो सार्थकता है, वो कहीं न कहीं हमसे चूक रही है। हमारे आचार्यों के अनुसार जिस समय भगवान महावीर का जन्म हुआ, उस समय चारों गतियों के जीवों को सुख का अनुभव हुआ, यहां तक कि पापी से पापी व्यक्ति को भी क्षणिक सुख की अनुभूति हुई। और तो और नरकवासियों को भी सुख का अनुभव हुआ क्योंकि ऐसे व्यक्ति का जन्म हो रहा है जो तीनों लोकों के कल्याण की बात बिना भेदभाव के करेगा और सभी का सही मार्ग प्रशस्त करेगा। भगवान महावीर ने पहले गृहस्थ धर्म को निभाया, फिर संत बनकर संत धर्म को निभाया, केवल ज्ञान की प्राप्ति के बाद दिव्य ध्वनि के माध्यम से सभी जीवों को एक जैसा उपदेश उन्होंने दिया। आचार्यों के अनुसार, जब तक हम भगवान महावीर के जन्म के समय जो घटनाएं घटी थीं, उन पर हम जोर नहीं देंगे, तब तक उनके जन्म कल्याणक मनाने की सार्थकता हमारे जीवन में नहीं हो सकती क्योंकि वे बालक थे, उनका जन्माभिषेक देवताओं ने किया था, आज हम मंदिरों में अभिषेक करते हैं लेकिन उसके पहले जीवों को जिस सुख-शांति का अनुभव हुआ था, क्या आज महावीर जयंती पर किसी को वह अनुभव होता है? आज कितने ऐसे व्यक्ति हैं, जो इस दिन महोत्सव से पहले किसी अनाथ या गरीब की मदद करते हैं, उसे खाना खिलाते हैं, शिक्षा के लिए सहयोग करते हैं? हमारी महान संस्कृति का बीजारोपण हो, उसके लिए कार्य करते हैं? रास्ते चलते को खाना खिलाना, अस्पतालों में जाकर फल बांटना प्रेरणादायी कार्य तो हो सकता है लेकिन यह कोई स्थाई कार्य नहीं है। हमें सोचना होगा कि हम इस पावन दिन ऐसा क्या करके जाएं, जिससे आने वाली कई पीढिय़ों को पे्ररणा मिले, हमारी संस्कृति अक्षुण रह पाए। इसी में महावीर जयंती की सार्थकता होगी। एक दिन इसे मना कर छोड़ देने से इसकी कोई सार्थकता नहीं है। जन्म कल्याणक की सार्थकता हम सभी के जीवन में होनी ही चाहिए। आप संकल्प करें कि मैं अपने जीवन में किसी न किसी एक बच्चे को पढ़ाऊंगा और उसे अपने पैरों पर खड़ा करूंगा, उससे उस व्यक्ति के साथ-साथ उसके आस-पास के व्यक्तियों को भी सुख प्राप्त होगा। हम तीन लोक के जीवों को खुश नहीं कर सकते लेकिन अपने आस-पास के वातावरण में बदलाव ला सकते हैं और इससे आपको भी शांति का अनुभव होगा। यह संगति के असर का नतीजा होगा। अगर हम भगवान महावीर के सच्चे अनुयायी हैं तो हमें यह संकल्प करना होगा कि हम किसी एक बच्चे को पढ़ाएंगे, किसी एक व्यक्ति को नौकरी देकर उसे आत्मनिर्भर बनाएंगे, ताकि उस पर आश्रितों का भी जीवन सुधरे। उसके बाद ही सच्चे अर्थों में धर्म की प्रभावना होगी। भगवान महावीर दूर-दृष्टा थे। वे समस्त विश्व के कल्याण की बात करते थे। हालांकि यह हमारी क्षमता से बाहर है तो हम अपनी क्षमता के अनुसार कम से कम एक जीव का तो कल्याण कर ही सकते हैं, तभी हम वास्तव में भगवान महावीर का जन्म कल्याणक सार्थक कर अपनी परंपराओं को कायम रख पाएंगे।

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