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समय के साथ बदला महामस्तकाभिषेक का स्वरूप, नहीं बदलीं तो बस परंपराएं


पहले बैलगाड़ी से आते थे लोग, अब हवाई जहाज से।


1925 में महामस्तकाभिषेक की खबर कबूतर के जरिए मद्रास भेजी गई थी।


अन्तर्मुखी मुनि पूज्य सागर महाराज

श्रवणबेलगोला - महामस्तकाभिषेक महोत्सव को संचालन के लिए 40 उपसमितियों का गठन किया गया है। 40 उपसमितियां मुख्य तौर पर कलश आवंटन और पंचकल्याणक उपसमिति के सहयोग के लिए ही हैं, जिससे सभी कार्य पूरे करना आसान हो जाएं। महोत्सव का मार्गदर्शन और निर्देशन एक ऎसे व्यक्ति के हाथ में है, जिन्हें तीन महामस्तकाभिषेक का एक अद्भुत अनुभव है। जिनके विचारों में नकारात्मकता नाम का कोई शब्द ही नहीं है। ऎसे व्यक्ति का नाम है श्रवणबेलगोला जैन मठ के कर्मयोगी स्वस्तिश्री चारूकीिर्त भट्टारक स्वामी जी। जिन्होंने मठ के इतिहास को 50 वर्षों में देश-विदेश तक पहुंचाया है। 1037 से महामस्तकाभिषेक की परम्परा चली आ रही है। 12 वर्ष में एक बार महामस्तकाभिषेक हो, यह निर्देश भी चामुंडराय के थे। वह चामुंडराय, जिसने भगवान बाहुबली की मूर्ति का निर्माण करवाया। समय के साथ महामस्तकाभिषेक का स्वरूप बदलता गया पर परम्परा जरा भी नहीं बदली। पहले प्रचार-प्रचार सीमित थे, तो अब उनका विस्तार हो गया। पहले अभिषेक की सामग्री कम हुआ करती थी, अब मात्रा बढ़ गई। व्यक्ति पैदल, बैलगाड़ी से आते थे और उन्हें श्रवणबेलगोला पहुंचने में महीनों लग जाते थे। समय बदला लोग रेल, बस का उपयोग कर आने लगे। अब हवाई जहाज का उपयोग होने लगा, सुबह आते हैं, अभिषेक कर शाम को वापस लौट जाते हैं। पहले व्यक्ति अपना भोजन साथ लेकर आते थे, अब यहीं उपलब्ध हो जाता है। 1925 में महामस्तकाभिषेक के समय अखबार मद्रास मेल के लिए मद्रास तक समाचार कबूतर से भेजा गया था। अब महामस्तकाभिषेक के समाचार एक क्लिक में सोशल मीडिया के जरिए मिनटों में देश-विदेश तक पहुंच रहे हंै। पहले कैमरे नहीं थे, फिर रील वाले ब्लैक एंड व्हाइट फिल्में आईं और फिर रंगीन कैमरे। अब रंगीन डिजिटल फोटोग्राफी का समय है। हजारों फोटो क्लिक करो और जो सही लगे, उसका उपयोग करो बाकी डिलीट कर दो। पहले मंच बनाने में महीनों लग जाते थे। धीरे-धीरे समय बदला और मंच के स्वरूप में भी बदलाव आया। समय कम लगने लगा और मंच का साइज बढ़ता गया। पहले महामस्तकाभिषेक करने वालों को मंच पर जाने का अवसर मिलता था पर अब देखने वालों को भी मंच पर जगह मिल जाती है। पहले महामस्तकाभिषेक आस-पास के गांव, कर्नाटक, भारत देश तक सीमित था, अब विदेश में भी चर्चा होने लगी है। महामस्तकाभिषेक की यात्रा एक अद्भुत यात्रा है । यात्रा को शब्दों ने कहा नही जा सकता देखने वाला अनुभुती कर सकता है ।


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