1. डूबते हुए सूर्य का दर्षन इस बात का संकेत है कि महावीर के मार्ग को प्रकाषित करने वाला आगम का ज्ञान उत्तरोत्तर अस्त होता हुआ समाप्त होगा। 2. कल्पवृक्ष की शाखा का भंग होना बतलाता है कि भविष्य में राजपुरुष वैराग्य धारण नहीं करेंगे। 3. सछिद्र चन्द्रमण्डल का अर्थ यही है कि विधर्मियों और नास्तिकों द्वारा धर्म का मार्ग छिन्न-भिन्न किया जाएगा। 4. बारह फणवाला सर्प अपने अस्तित्व से स्वप्न में घोषित कर गया है कि इस उश्ररापथ में बारह वर्ष तक भयंकर काल-वैषम्य होगा। 5. लौटता हुआ देव-विमान बतलाता है कि अब इस काल में देव, विद्याधर और ऋद्धिधारी सन्तों का अवतरण पृथ्वी पर नहीं होगा। 6. दूषित स्थान में खिले हुए कमल से फलित होता है कि कुलीन और प्रबुद्ध जन भी अनीति और अधर्म की ओर आकर्षित होंगे। 7. भूत-प्रेतों का वीभत्स नृत्य स्पष्ट करता है कि जनमानस पर अब प्राय: उनकी ही छाया रहेगी। 8. जुगनू के चमकने का संकेत यह संदेष देता है कि धर्म की ज्योति जिनके भीतर प्रज्ज्वलित नहीं है, ऐसे पाखण्डी लोग भी धर्मोपदेशक बनकर, धर्म के नाम पर लोकरंजन औश्र स्वार्थ-साधन करेंगे। 9. किंचित् किंचित् जलसहित शुष्क सरोवर देखकर यह समझना चाहिए कि धर्म की स्व-पर-कल्याणी वाणी का तीर्थ धीरे-धीरे शुष्क हो जाएगा। कहीं-कहीं किंचित् ही उसका अस्तित्व शेष बचेगा। 10. स्वर्ण-थाल में खीर खाता हुआ श्वान देखने से फलित होता है कि आगामी काल में नीच वृत्ति वाले चाटुकार ही लक्ष्मी का उपभोग करेंगे। स्वाभिमानी जनों को वह प्राय: दुष्प्राप्य होगी। 11. स्वप्न में गजारूढ़ मर्कट इतनी ही घोषणा करने आया था कि भविष्य में राजतंत्र, चंचल गतिवाले अनुकरण-पटु जनों के हाथों में पडक़र विदू्रपित होगा। 12. मर्यादा का उल्लंघन करते समुद्र की लहरों ने यह संकेत दिया है कि अब शासक और लोकपाल, न्याय-नीति की सीमाओं का उल्लंघन करेंगे। वे उच्छृंखल होकर स्वयं अपनी प्रजा की लक्ष्मी, कीर्ति, स्वाधीनता आदि का हरण करेंगे और नारियों की लज्जा, सतीत्व आदि से खेलेंगे। 13. बछड़ों के द्वारा रथ का वहन इस बात का प्रतीक है कि अब लोगों में युवावस्था में ही धर्म और संयम के रथ को खींचने की शक्ति पाई जाएगी। 14. गज पर आरूढ़ होने वाले राजपुत्रों का ऊंट के आसन पर दिखाई देना यह संकेत देता है कि अब राजपुरुष व्यवस्थित और शान्तिपूर्ण मार्गों का परित्याग करके, असन्तुलित और हिंसा से भरे मार्ग पर चलेंगे। 15. धूल-धूसरित रत्नों का अवलोकन यह अप्रिय संदेष देता है कि भविष्य में संयमरत्न के धारक, निर्ग्रन्थ तपस्वी भी एक-दूसरे की निन्दा और अवर्णवाद करेंगे। 16. काले हाथियों का द्वन्द्व-युद्ध बताता है कि गरजते हुए मेघ सानुपातिक जलवृष्टि अब प्राय: नहीं करेंगे। यत्र-तत्र अवर्षण से प्रजा को कष्ट होगा। [if !supportLineBreakNewLine] [endif]