आचार्य जिनसेनाचार्य ने बाहुबली भगवन के तप के बारे में आदिपुराण में वर्णन किया, उसके कुछ अंशों पर दृष्टि डालते हैं। उन्होंने एक वर्ष तक प्रतिमायोग धारण किया। वे बाहुबली वामी से निकलते हुए सर्पों से बहुत ही भयानक हो रहे थे। कंधों पर्यन्त लटकती हुई केशरूपी लताओं को धारण करने वाले वे अनेक सर्पों के समूह को धारण करने वाले हरिचंदन वृक्ष को अनुकरण कर रहे थे। जिसके कोंपल पत्ते विद्यार्थियों ने तोड़ लिए हैं, ऐसी वासंती लता उनके चरणों में पडक़र सूख गई थी। तप से उनका शरीर ही नहीं सूख गया था, किंतु दुख देने वाले कर्म भी सूख गए थे। उन्होंने नाग्न्य व्रत को धारण किया था। वे रति-अरति इन दोनों परीषहों को सहन करते थे। अन्य परिषहों को भी वे निरतंर सहन करते थे। उन्होंने क्षमा से क्रोध को, अंहकार के त्याग से मान को, सरलता से माया को और संतोष से लोभ को जीत लिया था। [if !supportLineBreakNewLine] [endif]
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