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बाहुबली का तपश्चर्या

  • अंतर्मुखी मुनि पूज्य सागर महाराज
  • Feb 4, 2018
  • 1 min read



बाहुबली ने काम पर विजय पाई थी। उन्होंने आहार, भय, मैथुन और परिग्रह संज्ञाओं को नष्ट किया था। वे अ_ाइस मूल गुणों और 84 लाख उत्तरगुणों का पालन करने में प्रयत्न करते थे। वे रस गौरव, शब्द गौरव और ऋद्धि गौरव सहित थे, अत्यंत नि:शल्य थे और दश धर्मों के द्वारा उन्हें मोक्षमार्ग में दृढ़ता प्राप्त हो गई थी। उन्होंने तीन गुप्तियों और पांच समितियों को धारण किया था। वे कभी विकथा नहीं करते थे। पांच इंद्रिय और मन को वश में करते थे। उन्हें तरह-तरह की ऋद्धियां प्रकट हो गई थीं। वे बारह भावनाओं का चिंतन करते थे। उनके चरणों में विरोधी प्राणी अपने विरोध को भूल जाते थे। उन मुनिराज के तप के प्रभाव से वन का आश्रम ऐसा शांत हो गया था कि यहां के किसी भी जीव को किसी के द्वारा कुछ भी उपद्रव नहीं होता था। एक वर्ष का उपवास समाप्त होने पर भरतेश्वर ने आकर जिनकी पूजा की है, ऐसा महामुनि बाहुबली कभी नष्ट नहीं होने वाली केवलज्ञान रूपी उत्कृष्ट ज्योति को प्राप्त हुए। [if !supportLineBreakNewLine] [endif]

 
 
 

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