सदियों से गोम्मटेश बाहुबली भगवान मानव जगत को स्वावलंबन से स्वतंत्रता और कत्र्तव्यबोध का संदेश दे रहे हैं। उनके महामस्तकाभिषेक की बारह वर्षीय परंपरा भी कालांतर में प्रारंभ हुई। किंतु महामस्तकाभिषेक से जीवन आत्म-सौंदर्य के बोध से परिपूर्ण नहीं हुआ। जीवन में यह पावनता नहीं आई, जो अपेक्षित थी। अन्याय, अनैतिकता, कुटिल मायाचार, ईष्र्या, अहंभाव के मनोविकारों और मिथ्यात्व पोषण से मन पूरी तरह से मुक्त नहीं हुआ। श्रमण संस्था की वीतरागता, पावनता और संयम की साधना प्रश्नचिह्नित हो गई। जिनेश्वरी दीक्षा भी यत्र-तत्र कुटिल वासना के चक्र से आहत होने लगी है। मां जिनवाणी की मर्यादा की रक्षा नहीं हो रही है। गुल्लिकाअज्जी का चमत्कार मात्र पूजा का विषय बनकर रह गया है। जीवन को पवित्र-पावन बनाने की जो परिकल्पना मातेश्वरी कालला देवी ने की थी, वह पूर्ण नहीं हो सकी। संपूर्ण बाह्य निमित उपलब्ध हैं, किंतु संवेदनहीनता और असहिष्णुता के कारण उपादान उपकृत नहीं हो पा रहा है। यह अनुकूल समय है कि सभी जन जिनवाणी मां के पावन आलोक में बौद्धिक ईमानदारी सहित वस्तुस्थिति का यथार्थ मूल्यांकन कर जीवन को जिनेश्वरी आदर्श का प्रतीक बनाएं, तभी हमारे समस्त बाह्य आयोजन सार्थक होंगे। जय गोम्मटेश बाहुबली! [if !supportLineBreakNewLine] [endif]
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