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गोम्मटेश्वर : जन-जन की अनुभूति

-मूर्ति ऐसी सुंदर है कि चाहे आप मीलों दूर से देखिए, चाहे नजदीक आकर, उसके सभी अंग ऐसे अनुपात में बनाए मालूम होंगे कि कहीं कुछ भी कमी मूर्ति में नजर नहीं आएगी। प्रत्येक अंग, पैर की अंगुलियों से लेकर नाक, कान तक अपने-अपने स्थान पर ठीक अनुपात में बनाए दिखाई पड़ते हैं। डॉ. राजेंद्र प्रसाद -मैं यहां आया, मैंने दर्शन किए और विस्मय-विमुग्ध रह गया।

पंडित जवाहर लाल नेहरू, 7.9.1951 -यह मूर्ति जो शक्ति और सौंदर्य का, बल का प्रतीक है, उसके चरणों में हम और आप आए हैं-पास से भी और दूर-दूर से भी। यहां हम भगवान बाहुबली के चरणों में हैं तो हम प्रार्थना करें कि हमारा देश ऊंचा उठे और दुनिया में चमके। और यहां जो मुनिगण आए हैं, उनसे हम अपने देश के लिए, अपने गरीबों के लिए, अपने दुर्बल लोगों के लिए आशीर्वाद मांगते हैं। श्रीमती इंदिरा गांधी, 21.2.1981 -गोम्मटेश्वर की यह प्रतिमा मूर्तिकला, प्रतीकार्य और अभियांत्रिकी का एक आश्चर्य है। डॉ. शंकर दयाल शर्मा, 2.12.1993 -मैं त्याग का संदेश चारों ओर फैलाने वाले भगवान बाहुबली के पास वह बल और प्रेरणा प्राप्त करने आया हूं, जिससे देश से गरीबी, अज्ञान और ऊंच-नीच के भेद को मिटाया जा सके। श्री पी.वी. नरसिंह राव, 18.12.1993 -आकृति और अंग-प्रत्यंग की संरचना की दृष्टि से यद्यपि यह प्रतिमा मानवीय है तथापि अधर लटकती हिमशिला की भांति अमानवीय, मानवोत्तर है और इस प्रकार जन्म-मरण रूप संसार से, दैहिक चिंताओं से, वयैक्तिक नियति, इच्छाओं, पीड़ाओं एवं घटनाओं से सफलतया असंपृक्त तथा पूर्ण अंतर्मुखी चेतना की निर्मल अभिव्यक्ति है। किसी अभौतिक, अलौकिक पदार्थ से निर्मित ज्योति स्तंंभ की नाईं वह सर्वदा स्थिर, अचल और चरणों में नमित एवं सोत्साह पूजनोत्सव में लीन भक्त समूह के प्रति सर्वथा निरपेक्ष, पूर्णतया उदासीन खड्गासीन है। श्री हैनरिक जिम्मर (सुप्रसिद्ध कला प्रेमी और चिंतक) [if !supportLineBreakNewLine] [endif]

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