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चामुंडराय के द्वारा किए गए अन्य निर्माण

जब चामुंडराय ने आचार्य नेमीचंद्र सिद्धांत चक्रवर्ती से कहा कि अब मुझे भी जिन दीक्षा धारण करनी है। अब मेरे सब काम पूरे हो गए हैं। आचार्य ने चामुंडराय को दीक्षा दे दी। अब चामुंडराय मुनि चामुंडराय हो गए और अपनी आत्मसाधना करते हुए वहीं चंद्रगिरि पर्वत पर समाधिमरण कर आत्मकल्याण किया। चामुंडराय को अनेक उपाधियां


भी समय पर मिली थीं। इनमें राय, वीर मार्तण्ड आदि शामिल थीं। विं ध्यगिरि पर्वत पर ब्रह्मयक्ष, त्याग स्तम्भ और अखंड बागिलु द्वार का निर्माण भी चामुंडराय के द्वारा ही करवाया गया है। प्रतिष्ठा और महामस्तकाभिषेक के बाद चामुंडराय की मां काललदेवी और पत्नी अजितादेवी ने आचार्य श्री नेमीचंद्र सिद्धांत चक्रवर्ती से आर्यिका दीक्षा धारण कर ली। आचार्य नेमीचंद्र ने चामुंडराय को आदेश दिया कि तुम अब राज कार्य से मुक्तहोकर शास्त्र लिखो। तब उन्होंने त्रिषष्ठि शलाका पुरुष चरित ग्रंथ लिखा। उसका बाद में नाम चामुंडराय पुराण रखा गया। उनके निमित्त से गोम्मटसार ग्रंथ की रचना भी वहीं पर हुई। इस बीच आचार्य अजितसेन का समाधिमरण हो गया था। [if !supportLineBreakNewLine] [endif]

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