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श्रवणबेलगोला नगर जिनालय




भण्डारी बसदि यह इस क्षेत्र की सबसे बड़ी बसदि है। इसकी लंबाई-चैड़ाई 266 फीट है। तीन दरवाजों को पार कर गर्भगृह में काले पाषाण की खड्गासन आदिनाथ भगवान से लेकर महावीर भगवान तक 24 तीर्थंकरों की प्रतिमा एक समान कद की विराजमान है। यही कारण है कि इसे चौबीस तीर्थंकर बसदि भी कहते हैं। बसदि की सुखनासी में पद्मावती और ब्रह्मदेव की मूर्तियां विराजमान हैं। इसका निर्माण सन् 1159 ई. में होयसल नरेश नरसिंह (प्रथम) भण्डारी हुल्ल द्वारा कराए जाने के कारण इसे भण्डारी बसदि कहते हैं। मंगायी बसदि बसदि में प्रवेश करते समय सीढिय़ों के दोनों ओर के हाथी गर्भगृह के द्वार मण्डप के चैरीधारक हैं। गर्भगृह में शांतिनाथ एवं महावीर भगवान की मूर्तियां हैं, जो अत्यंत मनोज्ञ प्रतिमाएं हैं। इसका दूसरा नाम त्रिभुवन चूड़ामणि है क्योंकि यह कर्नाटक में उपलब्ध अत्यंत रमणीय तीर्थंकर मूर्तियों में से एक है। इस बसदि का निर्माण 14 वीं शताब्दी में जैनमठ के पट्टाचार्य अभिनव चारुकीर्ति पंडिताचार्य की शिष्या राज नर्तिका मंगायी ने कराया था। नगर जिनालय इसे ‘श्रीनिलय’ भी कहा जाता है। ई. सन् 1060 में होयसल नरेश बल्लाल (द्वितीय) के नगराध्यक्ष तथा नयनकीर्ति सिद्धांत चक्रवर्ती के शिष्य नागदेव मंत्री ने इसका निर्माण करवाया। नगर के नखर(व्यापारी) द्वारा इसकी व्यवस्था की जाती थी, इसी कारण इसका नाम नगर जिनालय रखा गया है। बसदि के गर्भगृह में ढाई फीट ऊंची आदिनाथ भगवान की प्रतिमा है। दानशाला बसदि यह छोटी सी बसदि अक्कन बसदि के द्वार पर ही है। इसमें तीन फीट ऊंची एक पाषाण पर पंच परमेष्ठी की प्रतिमा उत्कीर्ण है। पहले यहां से याचकों को दान दिया जाता था। इस कारण इस बसदि का नाम ‘दानशाला’ पड़ गया।



सिद्धान्त बसदि किसी समय में जैन समुदाय के समस्त ग्रंथ इसी बसदि में रखे जाते थे। धवल, महाधवल आदि सिद्धान्त ग्रंथों की मूल प्रतियां इसी बसदि में रखी गईं, यही कारण था कि इसे सिद्धान्त बसदि कहा गया। ये प्रतियां अब मूड़बद्री में सुरक्षित हैं। वेदी पर एक ही पाषाण में 24 प्रतिमाएं उत्कीर्ण हैं, जिन्हें उत्तर भारत के किसी यात्री ने 1542 ई. में स्थापित करवाया था। बसदि इससे भी प्राचीन है। जैन मठ बसदि यहां गर्भगृह में मूलनायक चंद्रप्रभु भगवान की सफेद पाषाण की बहुत ही मनोज्ञ प्रतिमा विराजमान है। आस-पास की वेदिकाओं में धातु निर्मित अनेक प्राचीन प्रतिमाएं विराजमान हैं। रत्नप्रतिमा को रखने के लिए अलग मंदिर बनाया गया है। मठ मंदिर में अनेक चित्र हैं, जो जैन संस्कृति से संबंधित हैं। अक्कन बसदि 1025 ई. में इस बसदि का निर्माण होयसल नरेश बल्लाल (द्वितीय) के ब्राह्मण मंत्री चन्द्रमौली की पत्नी आचियवक्कन ने करवाया था। राजा ने इस व्यवस्था के लिए बम्मेयनहल्लि नाम का ग्राम दान दिया था। अक्कन आचियवक्कन का ही संक्षिप्त रूप है। इसी से इसका नाम अक्कन बसदि पड़ा। गर्भगृह में पाश्र्वनाथ भगवान की 5 फीट ऊंची सप्तफणी मूर्ति विराजमान है। सुखानासी में पद्मावती और धरणेन्द्र की मूर्तियां हैं। इस बसदि की यह विशेषता है कि इसमें काले पत्थर के चार मनोज्ञ स्तम्भ और मण्डप की छत पद्मशिला की है। पाश्र्वनाथ मंदिर चंद्रप्रभ मंदिर के ऊपर तीन मंदिर हैं। उनमें से प्रमुख जिनालय पाश्र्वनाथ मंदिर है। इस जिनालय में भगवान पाश्र्वनाथ की मूल-नायक प्रतिमा के अतिरिक्त और अन्य प्रतिमाएं भी पाई जाती हैं। यह जिनालय बीसवीं शताब्दी में बनाया गया है। ये प्रतिमाएं भले ही प्राचीन नहीं हैं और न अधिक विशाल हैं किन्तु मनोज्ञ होने से भक्तों को आकर्षित करने में समर्थ हैं। प्रवेश द्वार के पास अनेक उपशिल्प भी स्थापित हैं। रत्नत्रय मंदिर अधिकांश पूर्ण भारत में शान्तिनाथ, कुन्थुनाथ और अरहनाथ का त्रिमूर्ति जिनालय पाया जाता है। श्रवणबेलगोला में विंध्यगिरि पर्वत पर तथा चंद्रप्रभ भगवान के मंदिर के ऊपर स्थित जिनालय में अरहनाथ, मल्लीनाथ और मुनिसुव्रतनाथ भगवान की मनोज्ञ प्रतिमाएं विराजित हैं। रत्नत्रय विधान में इन्हीं मूर्तियों का उल्लेख पाया जाता है। नेमीनाथ मंदिर पाश्र्वनाथ मंदिर के पीछे एक जिनालय है। उसमें नेमीनाथ भगवान की प्रतिमा है। इस प्रतिमा का निर्माण काले पाषाण से हुआ है। प्रतिमा अत्यन्त नयनरम्य है। एक उन्नततम वेदी में स्थित कमलासन पर विराजमान की गई इस जिन प्रतिमा की ऊंचाई लगभग एक फीट है। पांडुकशिला मंदिर यह भण्डार बसदि के बाह्य प्रांगण में स्थित जिनालय है। इसका निर्माण बीसवीं शताब्दी में हुआ है। इस जिनालय में भगवान नेमीनाथ की प्रतिमा विराजमान की गई है। इसे एक उन्नत वेदी पर स्थापित किया गया है। यह प्रतिमा डेढ़ फीट ऊंची है। प्रतिमा श्वेत पाषाण से निर्मित है। क्षेत्र पर महावीर जयन्ती के शुभ अवसर पर (चैत्र शुक्ल त्रयोदशी) प्रतिवर्ष पंच कल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव होता है। इस महोत्सव का जन्माभिषेक इसी जिनालय में सम्पन्न होता है। जारुगुप्पे ब्रह्मदेव मंदिर विंध्यगिरि पर्वत पर ब्रह्मदेव का एक मंदिर है। स्थानीय भाषा में इसे जारुगुप्पे अप्प कहते हैं। इस मंदिर का निर्माण ईस्वी सन् 1678 में हिरीसाली निवासी गिरिगौड के अनुज रंगय्य ने करवाया था। इस मंदिर में ब्रह्मदेव की मूर्ति विराजमान है। जारुगुप्पे पाश्र्वनाथ बसदि ब्रह्मदेव मंदिर की ऊपरी मंजिल पर पाश्र्वनाथ बसदि है। इसमें भगवान पाश्र्वनाथ की 3 फीट ऊंची खड्गासनावस्था मूर्ति है। इस प्रतिमा के साथ अन्य 23 तीर्थंकरों की मूर्तियां भी हैं। भगवान पाश्र्वनाथ के समीप वाली दोनों मूर्तियां कायोत्सर्ग आसन में है। एक प्रतिमा भगवान के मस्तक भाग में है। श्रवणबेलगोला से दो किमी दूर अम्मा बसदि या जक्कलांबा मंदिर विंध्यगिरि पर प्राचीनतम है। इसमें एक ही चट्टान पर भगवान नेमीनाथ और कुष्मांडणी देवी की मूर्तियां हैं। समवशरण मंदिर बीसवीं शताब्दी में बने हुए श्रवणबेलगोला के मंदिरों में यह मंदिर अत्यंत रमणीय है। विद्यानंद निलय के ऊपर इस जिनालय का निर्माण हुआ है। मंदिर की रचना नक्षत्र के आकार में हुई है। बड़े-बड़े दर्पणों से सुसज्जित मंदिर में समवशरण की रचना है। पीठिका पर चार प्रतिमाएं हैं। चारों ही प्रतिमाएं पद्मासन में बहुत मनोहारी श्वेत पाषाण से निर्मित हैं। इनकी ऊंचाई करीब ग्यारह इंच है।

कल्याणी सरोवर नगर के बीचो-बीच एक ऊंचे परकोटे से घिरा हुआ, चारों ओर सीढिय़ों वाला यह मनोहर जलाशय है। चारों दिशाओं में इसके प्रवेश द्वार गौपुरम शैली के बने हुए हैं। उत्तर दिशा में एक मण्डप है, जिसके अभिलेख से इसका निर्माण काल 17वीं शताब्दी ज्ञात होता है। कल्याणी ही वह प्राचीन धवल सरोवर है, जिसके कारण इसका नाम ‘बेलगुल नगर’ पड़ा। कालान्तर में श्रमण संतों के सान्निध्य के कारण ही बदलकर ‘श्रवणबेलगोला’ हो गया। शांतिनाथ बसदि श्रवणबेलगोला से 2 किलोमीटर दूर जिननाथपुर नाम का नगर है, जिसमें दो मंदिर हैं। पहला भगवान पाश्र्वनाथ भगवान का मंदिर है। दूसरा भगवान शांतनाथ भगवान का मंदिर है, इसमें शांतिनाथ भगवान की साढ़े पांच फीट ऊंची पद्मासन मूर्ति विराजमान है। बाह्य दीवारों पर यक्ष धरणेन्द्र, सरस्वती, अंबिका, मन्मथ चक्रेश्वरी आदि की अनेक कलात्मक मूर्तियां अंकित हैं। अरेकल बसदि इस बसदि के पास एक अरेकल बसदि है। इसमें शांतिनाथ भगवान की डेढ़ फुट ऊंची पद्मासन प्रतिमा विराजमान है।

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