चंद्रगिरि पहाड़ी पर आचार्य श्री नेमीचंद्र सिद्धांत चक्रवर्ती के निर्देशन में महामंत्री चामुंडराय ने एक तीर छोड़ा, जो इस पहाड़ी के सामने वाली पहाड़ी पर एक शिला पर जा पहुंचा। वहीं पर कारीगर द्वारा भगवान बाहुबली की मूर्ति का निर्माण प्रारम्भ हुआ। आज इसी पहाड़ी को विंध्यगिरि पर्वत कहते हैं। इसी पहाड़ी पर आचार्य भद्रबाहु स्वामी का समाधिमरण हुआ और उनके चरणों की सेवा 12 वर्ष तक मुनि चंद्रगुप्त (सम्राट चंद्रगुप्त) ने की। तभी देवों ने मुनि चंद्रगुप्त को आहार करवाया। कटवप्र, तीर्थगिरी, ऋषिगिरि, छोटा पहाड़, समाधिगिरि, चिक्कबेट्टा आदि नामों से जाना जाने वाला चंद्रगिरि पर्वत समुद्रतल से 3053 (3042) फीट ऊंचा है और कहीं-कहीं पर 3049 फीट ऊंचाई का भी वर्णन है। इसकी आस-पास के मैदान से ऊंचाई 175 फीट है और कहीं-कहीं पर इसकी 200 फीट ऊंचाई का भी वर्णन मिलता है। चंद्रगिरि पर्वत पर 935 फीट चलने के बाद मंदिरों का परकोटा प्रारंभ होता है। यहां कुल 14 दर्शनीय बसदियां यानि मंदिर, एक गुफा और एक मानस्तम्भ है। इस पर्वत पर 7-9वीं सदी में मंदिरों का निर्माण नहीं था। इस सदी में यहां पर साधु और श्रावक आत्मसाधना के बाद अपना समाधिमरण करते थे। इसके बाद 9-10वीं सदी से अलग-अलग राजाओं, मंत्रियों, रानियों और श्रावकों द्वारा मंदिरों का निर्माण प्रारम्भ हुआ। फिर 13वीं सदी के बाद यहां किसी मंदिर का निर्माण नहीं हुआ। जितने भी मंदिर यहां हैं, वे सभी 13वीं सदी के पहले के बने हुए |
चंद्रगिरि पर्वत की बसदियां
1. शांतिनाथ बसदि दसवीं सदी के अंत या 11 वीं सदी के प्रारंभ में इसका निर्माण हुआ। इसमें शांतिनाथ भगवान की खड्गासन में 11 फीट ऊंची मूर्ति है।
2. सुपाश्र्वनाथ बसदि इस बसदि के बाहर सुपाश्र्वनाथ बसदि लिखा है पर इतिहासकारों ने इसे पाश्र्वनाथ भगवान का मंदिर बताया है। इसमें सप्तफणी पाश्र्वनाथ भगवान की 3 फीट ऊंची पद्मासन में विराजित प्रतिमा है।
3. चंद्रप्रभ या वक्रगच्छ बसदि शिलालेख के अनुसार इसे गंगराज शिवमार ने दसवीं सदी के करीब बनवाया था। इसमें चंद्रप्रभु भगवान की तीन फीट ऊंची प्रतिमा है।
4. एरडु कट्टे बसदि इस बसदि का निर्माण गंगराज सेनापति की पत्नी लक्ष्मी देवी ने बारहवीं सदी में करवाया है। इस बसदि में आदिनाथ भगवान की पद्मासन अवस्था में मूर्ति है।
5. चामुंडराय बसदि यह विशाल भवन इस पर्वत पर सबसे सुंदर है। इसकी लंबाई-चौड़ाई 68 गुणा 36 फुट है। ऊपर दूसरे खंड की ओर एक सुंदर शिखर भी है। इसमें भगवान नेमीनाथ की पांच फुट ऊंची प्रतिमा है। गर्भगृह के दरवाजे पर दोनों तरफ क्रमश: यक्ष सर्वाहृ और यक्षिणी कुष्मांडणी की मू्र्तियां हैं। इसका निर्माण चामुंडराय ने करवाया था।
6. पाश्र्वनाथ बसदि चामुंडराय बसदि के आग्नेयी कोने में निर्मित संकरी सीढिय़ां चढक़र जाने पर ऊपरी भाग में पाश्र्वनाथ मंदिर है। इसका निर्माण चामुंडराय के सुपुत्र जिनदेवन ने किया था। इसमें विराजित पाश्र्वनाथ भगवान सात फणों वाले सर्प से अलंकृत हैं। खड्गासन अवस्था में निर्मित यह प्रति 11 इंच ऊंची वेदी पर है। प्रतिमा की ऊंचाई साढ़े चार फीट है। मूर्ति के साथ ही एक फीट दो इंच की ऊंचाई वाली एक-एक यक्ष-यक्षी की प्रतिमा है।
7. सवति गन्धवारण बसदिइस मंदिर का निर्माण 1123 ईस्वी में होयसल नरेश विष्णुवर्धन की रानी शान्तला देवी (उपनाम सवति गन्धवारण) ने करवाया था। इस बसदि में शांतिनाथ भगवान की पांच फीट ऊंची मूर्ति विराजमान है।
8. तेरिन बसदि मंदिर के सामने रथाकार इमारत बनी हुई है, इसी कारण से इस बसदि का नाम तेरिन बसदि पड़ा। इसका निर्माण 1117 ईस्वी में विष्णुवर्धन नरेश के समय के होयसल सेठ की माता माचिकब्बे और नेमीसेठ की माता शान्तिकब्बे ने करवाया था। इस बसदि में भगवान बाहुबली की 5 फीट ऊंची मूर्ति है।
9. शांतिश्वर बसदि इसमें भगवान शांतिनाथ की मूर्ति है। पीछे एक खड्गासन प्रतिमा है। निर्माण 1117 ई. में एचिमय्या ने कराया था।
10. मज्जिगण बसदि इसका निर्माण 12-13वीं सदी में होने का अनुमान लगाया जाता है। इसमें अनंतनाथ भगवान की साढ़े तीन फीट ऊंची प्रतिमा विराजमान है।
11. शासन बसदि इसे गंगराज की मां और पत्नी ने 1118 ईस्वी में बनवाया था। इसमें भगवान आदिनाथ की 5 फीट ऊंची प्रतिमा विराजमान है।
12. चंद्रगुप्त बसदि चंद्रगिरि पर प्राचीनतम इस मंदिर में भगवान पाश्र्वनाथ हैं। 12वीं शताब्दी में शिल्पी दासौज द्वारा निर्मित जाली यहीं है। बरामदे में पद्मावती और कुष्मांडणी देवी की मूर्तियां हैं।
13. कत्तले बसदि यह छोटी पहाड़ी का सबसे बड़ा मंदिर है। इसका निर्माण गंगराज ने अपनी मां पोचिकब्बे की स्मृति में 1118 ईस्वी सन् में करवाया था। इसमें श्री आदिनाथ भगवान की 6 फीट ऊंची पद्मासन प्रतिमा विराजित है।
14. पाश्र्वनाथ बसदि इसका निर्माण धनकीर्ति देव द्वारा 11 वीं सदी का है। इसमें 15 फीट की सप्तफणी पाश्र्वनाथ भगवान की खड्गासन प्रतिमा है। यहां बाहुबली भगवान के बाद यही सबसे ऊंची प्रतिमा है।
भद्रबाहु गुफा
इस गुफा में भद्रबाहु स्वामी के चरणचिह्न स्थापित हैं। गुफा के सामने एक दरवाजा है, जो 100 वर्ष पुराना मालूम होता है। अकाल पडऩे के कारण उज्जैनी नगरी छोड़ आचार्य भद्रबाहु स्वामी अपने 12 हजार शिष्यों के साथ दक्षिण की ओर विहार करने निकले। विहार करते हुए वे चंद्रगिरि पर्वत (श्रवणबेलगोला) पर विश्राम के लिए रुके तो उन्हें अपने दिव्य ज्ञान से पता चला कि अब आयु कम रही है। तब आचार्य भद्रबाहु स्वामी ने अपनी आत्म साधना का स्थान चंद्रगिरि पर्वत को चुना और यहीं पर समाधिमरण कर अपनी आत्मा का कल्याण किया। आचार्य भद्रबाहु अंतिम श्रुतकेवली थे। समाधिमरण के बाद उनके शिष्य चंद्रगुप्त ने 12 वर्ष तक उनकी चरण वन्दना चंद्रगिरि पर्वत पर रहकर की।
मानस्तम्भ पाश्र्वनाथ बसदि के ठीक सामने उन्नत मानस्तम्भ है। इसकी ऊंचाई पैंसठ फीट है। इसका निर्माण ईस्वी सनï् 1750 में हासन निवासी पुट्टय्या शेट्टी ने करवाया था। इसका वर्णन ईस्वी सनï् 1780 में लिखे गए एक कन्नड़ काव्य में किया गया है। उस समय मैसूर नरेश चिक्कदेव राजा ओड़ेयर का शासन काल था। विशेष यह है कि इसका एक शिलास्तम्भ पचास फीट ऊंचा तो दूसरा पन्द्रह फीट ऊंचा है। इस स्तम्भ पर चतुर्मुखी जिनबिम्ब है। एक दिशा में छह प्रतिमाएं होने से इस मानस्तम्भ में चौबीसी के दर्शन हो जाते हैं। मानस्तम्भ पर पूर्व दिशा में खड्गासनवास्था में यक्ष प्रतिमा है, दक्षिण दिशा में पद्मावती की प्रतिमा है, पश्चिम दिशा में दु्रतगामी घोड़े पर सवार एक यक्ष की प्रतिमा है और उत्तर दिशा में कुष्मांडणी देवी की प्रतिमा है।
चामुंडराय शिला चामुंडराय शिला तक पहुचने के लिए चंद्रगिरि पर्वत की कुछ सीढिय़ां चढऩे पर उल्टे हाथ पर चामुंडराय शिला है। इस शिला पर जिनेन्द्र भगवान की सत्तालय है। कहा जाता है कि एक जगह से चामुंडराय ने विंध्यगिरि पर्वत पर बाण चलाया था, जहां बाण लगा, वहीं पर भगवान बाहुबली की प्रतिमा का निर्माण हुआ था।
कूगे ब्रह्मदेव का स्तम्भकूगे शब्द के दो अर्थ हैं। कूगे शब्द का एक अर्थ नाव होता है। जिस प्रकार नाव जलाशय से तिरने में सहयोग प्रदान करती है, उसी प्रकार जिनशासनरूप ब्रह्मदेव भक्तों को भव से पार होने में सहयोग करता है। जिनशासन के महत्व को बताने वाला होने से इस स्तम्भ को कूगे ब्रह्मदेव का स्तम्भ कहते हैं। कूगे शब्द का दूसरा अर्थ होता है-बोलना। इस अंचल में यह प्रसिद्ध है कि जब कभी इस अंचल में कोई संकट आने वाला होता है तो उसकी पूर्वसूचना इस स्तम्भ के अधिष्ठाता देवों की आवाज से जानी जा सकती है। अत: इसका कूगे नाम सार्थक है। इस स्तम्भ की ऊंचाई तीस फीट की है। स्तम्भ पर तीन फीट ऊंची पूर्वमुखी सर्वाह्न यक्ष की प्रतिमा है। स्तम्भ के निचले भाग में आठों दिशाओं में आठ हाथियों का निर्माण किया गया था, किन्तु कालप्रवाह में पांच हाथी विनिष्ट हो गए। इस स्तम्भ पर एक सौ तेरह पंक्तियों का शिला लेख भी है। उसके अनुसार राजा भारसिंह ने धारवाड़ जिले के बंकापुर में परम पूज्य आचार्य श्री अजितसेन जी महाराज के सान्निध्य में ईस्वी सन् 974 में समाधिमरण किया था। उसके स्मरणार्थ इस स्तम्भ का निर्माण किया गया था।
चौबीस शिला सत्तालय के बाएं हाथ पर लगभग 250 मीटर पर चौबीस शिला है, इस शिला पर चौबीस तीर्थंकर की मूर्ति और दो प्रतिमा और हैं। एक संभवत: सिद्ध भगवान की और दूसरी भगवान बाहुबली की प्रतिमा अंकित है। प्रभाचंद्र जी महाराज के चरण भद्रबाहु गुफा के पास से ही एक ऊंची चट्टान है, जिसे चंद्रगुप्त शिला कहते हैं। उसी पर दो चरण बने हुए हैं। पहले चरण पांचवे श्रुतकेवली भद्रबाहु स्वामी के चरण और दूसरे मुनि प्रभाचंद्र जी महाराज (सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य) के हैं। कुन्दकुन्द स्वामी के चरण चंद्रगिरि पर्वत की कुछ सीढिय़ां चढऩे पर उल्टे हाथ पर आचार्य कुन्दकुन्द स्वामी के चरण चिह्न हैं। महानवमी मण्डप शांतिनाथ बसदि के कुछ कदम आगे जाने पर दो चतुस्तम्भ मण्डप बने हुए हैं। दोनों के मध्य में एक-एक लेखायुक्त स्तम्भ है। जिसमें नागदेव ने अपने गुरु नयनकीर्ति आचार्य के समाधिमरण का विवरण सन् 1176 में अंकित करवाया है। भरत भगवान इनके अलावा इस पहाड़ी पर भरतेश्वर स्वामी की प्राचीन खण्डित प्रतिमा है। घेरे के बाहर इरूवे ब्रह्मदेव नामक मंदिर है। यहीं कंचीन दोणे और लक्की दोणे नाम के दो कुंड हैं। एक अन्य तालाब जिनदेव दोणे भी है। पर्वत से नीचे उतरते समय दाहिनी ओर चामुंडराय शिला है। श्रवणबेलगोला में मिलने वाले 106 स्मारकों में से 62 तो छोटे पहाड़ पर ही हैं, जिनमें लगभग 47 संन्यासियों के और 5 गृहस्थों के स्मारक हैं।