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प्रतिपल रच रहा नया इतिहास श्रवणबेलगोला

श्रवणबेलगोला एक जीवंत तीर्थ है। गति के साथ विकास और धर्म के साथ सेवा का उदाहरण प्रस्तुत करते हुए नित नया इतिहास रचने वाला आत्मसाधना का केंद्र श्रवणबेलगोला अब सामाजिक सेवा के लिए भी जाना जाने लगा है। वैसे भी इतिहास को जानना एक ऐसी पुस्तक को पढऩेे के समान है, जिसके आदि और अंत का पता नहीं है। जैसे-जैसे पढ़ते जाएंगे, वैसे-वैसे नए अध्याय एक के बाद एक खुलते ही जाते हैं। जब तक नई जानकारी मिलती रहती है, ज्ञान के अन्वेक्षक उसका अनुसंधान करते ही रहते हैं। ऐसा ही कुछ मन्दिर, तीर्थ क्षेत्र, संत, शास्त्र या किसी महापुरुष के जीवन के इतिहास के साथ भी होता है। जब-जब उन पर खोज होती है तो उनके इतिहास के अध्यायों में एक और अध्याय, एक और नया पृष्ठ जुड़ जाता है। वर्तमान भी दूसरे ही पल इतिहास बन जाता है और हर कार्य अपने में महत्वपूर्ण हो जाता है। श्रवणबेलगोला पर भी समय-समय पर खोज होती गई और इसके इतिहास के पन्नों में एक के बाद एक नए अध्याय जुड़ते ही चले गए। खास बात यह थी कि नई खोज में भी पुराना इतिहास सुरक्षित रहा यानी दोनों में कोई विरोधाभास नहीं मिला। श्रवणबेलगोला का ज्ञात इतिहास 7वीं सदी से प्रारम्भ होता है, जब यह आत्मसाधना के प्राकृतिक दुर्गम और दुरुह क्षेत्र के रूप में था, जहां साधु और श्रावक आत्मसाधना, स्वाध्याय करते हुए समाधिमरण प्राप्त करते थे। इतिहास में इस काल के दौरान ऐसे ही प्रमाण मिलते हैं। समय के साथ धीरे-धीरे यहां मन्दिरों, तालाबों, गुफाओं, मानस्तम्भों, शास्त्र-भण्डार आदि का निर्माण होना प्रारम्भ हुआ। अनूठी है श्रवणबेलगोला की विकास यात्रा श्रवणबेलगोला के इतिहास और विकास यात्रा को मुख्य रूप से चार चरणों में विभाजित किया जा सकता है। तीन चरणों का विकास तो 13वीं सदी तक माना जा सकता है, चौथा चरण तीन चरणों की प्राचीन थाती के संरक्षण और शिक्षा, चिकित्सा, समाज सेवा और अन्य विकास कार्यों के करीब 55 वर्ष में धु्रत गति से हुए विकास से सम्बद्ध है। इससे यहां के इतिहास को आसानी से जाना जा सकता है। प्रथम चरण 7वीं सदी से 9वीं सदी का है, जो आत्मसाधना व स्वाध्याय के लिए चर्चित रहा है। दूसरा चरण 9वीं सदी से प्रारम्भ होता है, जब सम्राट अशोक ने यहां पर मन्दिर का निर्माण करवाया था। तीसरा चरण 980 ईस्वी का है, जब आचार्य नेमीचन्द्र सिद्धांत चक्रवर्ती के सान्निध्य में चामुंडराय ने यहां भगवान बाहुबली की मूर्ति का निर्माण करवाकर विश्व को एक अद्भुत सौगात दी। इसी के साथ भद्रबाहु स्वामी ने भी अंतिम समय साधना कर अपना समाधिमरण यहीं पर कर इस स्थली की आध्यात्मिक साधना की कड़ी का क्रम बनाए रखा। संतों ने यहीं बैठकर समय-समय पर अनेकों शास्त्रों की रचना की है। आज भी ऐसा लगता है कि धवला-महाधवला की वाचनाओं के स्वर यहां गुंजायमान हों। श्रवणबेलगोला में अधिकांश मन्दिर, शिलालेख, स्तूपक, तालाब आदि के निर्माण की पृष्ठभूमि में किसी न किसी की स्मृति या उनके निर्माण के पीछे कोई न कोई घटना अवश्य है। श्रवणबेलगोला क्षेत्र के इतिहास और मन्दिरों आदि को उनके निर्माण से ही समय-समय पर तत्कालीन राजाओं, मंत्रियों या सत्ता से राजकीय संरक्षण प्राप्त होता रहा है। चौथे चरण में हुआ जीर्णोद्धार चौथा चरण आज से लगभग 55 वर्ष पहले प्रारम्भ होता है। इस समय श्रवणबेलगोला में कोई मन्दिर, तालाब आदि का निर्माण तो नहीं हुआ लेकिन इनकी सुरक्षा और श्रवणबेलगोला के इतिहास को जनमानस तक पहुंचाने के लिए बिना प्राचीनता को नष्ट किए एवं बिना नुकसान पहुंचाए जीर्णोद्धार का काम वृहद् स्तर पर हुआ है। इसी के साथ शिक्षा, चिकित्सा, समाज सेवा और आवास के क्षेत्र में एक बड़ा परिवर्तन इस काल में हुआ। यह सब कार्य वर्तमान के भट्टारक कर्मयोगी स्वस्ति श्री चारुकीर्ति स्वामी जी के मार्गदर्शन में हुआ है। आप सब भी श्रवणबेलगोला की यात्रा प्रारम्भ करने से पहले एक संकल्प करें कि हम वन्दना करते समय स्वच्छता का ध्यान रखते हुए इतिहास को पूर्ण सुरक्षित रखेंगे। श्रवणबेलगोला में धार्मिक स्थल, शिक्षा, चिकित्सा, समाज सेवा के साथ यहां होने वाली निमित्तिक गतिविधियां भी इसके वैभव और इतिहास को सुरक्षित रखने वाली हैं। यहां के इतिहास, मन्दिर, शिक्षा, चिकित्सा और सामाजिक सेवा के बारे में थोड़ी जानकारियां हासिल करना सभी के लिए आवश्यक है। कोला से बना श्रवणबेलगोला श्रवणबेलगोला के धार्मिक स्थल इस प्रकार हैं... यहां चन्द्रगिरी पर्वत, विंध्यगिरी पर्वत, नगर जिनालय, जिननाथपुर प्रमुख धार्मिक स्थल हैं। श्रवणबेलगोला के अन्य नाम इस प्रकार से हैं... श्रवणबेलगोला को गोम्मटेश्वरम्, बाहुबली जी, जैन बद्री, बेलगोला, जैनपुर आदि नामों से जाना जाता है। 2500 वर्ष पहले इसका नाम कोला था। श्रवणबेलगोला नामकरण आज से करीब 2400 वर्ष पहले सम्राट अशोक द्वारा किया गया। श्रवणबेलगोला कन्नड़ शब्द है जिसका अर्थ ‘दिगम्बर जैन मुनियों का धवल सरोवर।’ श्रवणबेलगोला में एक वृहद शास्त्र-भण्डार था। धवला-महाधवला की वाचनाओं के स्वर यहां गूंजते थे, इसी कारण इसका नामकरण ‘धवल सरोवर' हुआ। श्रवणबेलगोला में कुल 38 बसदियां यानी मन्दिर हैं, जिसमें से चन्द्रगिरी पर्वत पर 16 मन्दिर, विंध्यगिरी पर्वत पर 8 मन्दिर, श्रवणबेलगोला नगर में 14 मन्दिर हैं। इसके अलावा यहां तांबे का कलश, राजा श्रेयांस आहार शाला, कल्याणी तलाब, रत्नत्रय मन्दिर देखने योग्य हैं।[endif]

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