दो ड्इबेट्ट, बडा कल्वप्पु (पेरकलवप्पु), इंद्रगिरि, बड़ा पहाड़ आदि सभी विंध्यगिरि पर्वत के ही अन्य नाम हैं। इसकी समुद्रतल से ऊंचाई 3343 फीट है। कहीं पर 3288 फीट का भी उल्लेख है। और यह आस-पास की भूमि से 470 फीट ऊंचाई पर है। विंध्यगिरि पर्वत पर 7 दर्शनीय स्थल हैं। इसका इतिहास 10वीं सदी अर्थात् जबसे बाहुबली भगवान की मूर्ति का कार्य प्रारम्भ हुआ है, तभी से प्रारम्भ होता है। यह पर्वत एक ही चट्टान का बना हुआ दिखाई देता है। पहाड़ पर ऊपर पहुंचने के लिए पहाड़ की चट्टानों पर ही उकेरी हुई सीढ़ी से चढक़र जाना होता है। इस पहाड़ पर ही भगवान बाहुबली की एक ही चट्टान में बनी 58 फीट ऊंची खड्गासन प्रतिमा है। यह प्रतिमा बिना किसी सहारे के ही खड़ी हुई है। भगवान बाहुबली की प्रतिमा बनाते समय जितना पत्थर व्यर्थ निकला था, उतना सोना तोल कर कारीगर को दिया जाता था पर अंत में वह कारीगर मूर्ति बनाकर बिना बताए सोना वहीं छोडक़र चला गया। आज तक इतिहास के किसी भी पन्ने में उस कारीगर के नाम का उल्लेख नहीं है। विंध्यगिरि पर्वत के दर्शनीय स्थल विंध्यगिरि पर्वत पर चौबीस तीर्थंकर बसदि, ओदेगल बसदि, त्यागद ब्रह्मदेव स्तंभ, चेन्नण्ण बसदि, सिद्धर गुण्डु, अखंड बागिलु, गुल्लिका अज्जी बागिलु, 24 सुत्तालय, गोम्मटस्वामी मंदिर, सिद्धर बसदि प्रमुख रूप से दर्शनीय हैं। विंध्यगिरि पर्वत पर मंदिरों के पास दीवारों पर बने चित्र भी अपने आप में समृद्ध इतिहास समेटे हैं। यहां चामुंडराय चरण भी दर्शनीय हैं। पर्वत की तलहटी पर ब्रह्मदेव मंदिर और पाश्र्वनाथ मंदिर भी हैं, जिनके दर्शन का लाभ श्रद्धालु उठा सकते हैं।
विंध्यगिरि पर्वत की बसदियां चौबीस तीर्थंकर बसदि विंध्यगिरि के बाहरी परकोटे के अंदर प्रवेश करते ही पहला मंदिर यहीं मिलता है। सन् 1648 में चारूकीर्ति पंडित धर्मचन्द्र ने इसका निर्माण करवाया था। पत्थर की एक शिला के नीचे तीन मूर्तियां खड़ी हैं और ऊपर की ओर 29 छोटी-छोटी मूर्तियां गोल प्रभामण्डल में अंकित हैं। ओदेगल बसदि इस पहाड़ की बसदियों में यह सबसे बड़ा है। इसके अंदर तीन गर्भालय हैं इसलिए इसे त्रिकुट बसदि भी कहते हैं। आदिनाथ, शांतिनाथ, नेमीनाथ की विशाल पद्मासन मूर्तियां यहां है। त्यागद ब्रह्मदेव स्तम्भ इसका दूसरा नाम चागद वंहृब (परित्याग का स्तम्भ) भी है। इसी स्थान पर बैठकर चामुंडराय ने बाहुबली की मूर्ति बनाने वाले और अन्य सहायकों को उनका परिश्रम धन दिया था। इसी स्तम्भ के पास बैठकर चामुंडराय गरीबों और सत्य पात्रों को दान दिया करते थे। स्तंभ के निचले हिस्से में गुरु-शिष्य की मूर्ति बनी है। सम्भवत: यह गुरु आचार्य नेमीचंद्र व शिष्य सिद्धांत चक्रवर्ती और वीर चामुंडराय की मूर्ति ही है। चेन्नण्ण बसदि इस बसदि में चंद्रप्रभु भगवान की ढाई फीट ऊंची प्रतिमा विराजमान है। एक अभिलेख बतलाता है कि इस बसदि को प्रथम तीर्थंकर आदिनाथ के लिए बनवाया गया था, पर वर्तमान में मूर्ति चंद्रप्रभु भगवान की है। बसदि के पास एक मानस्तम्भ भी है। अभिलेख के अनुसार सन् 1573 में चेन्नगण नाम के व्यक्ति ने इस बसदि को बनवाया था। सिद्धर गुण्डु अखण्ड बागिलु के दाहिनी ओर एक चट्टान पर अनेक तीर्थंकर की प्रतिमा और आचार्यों, मुनियों की प्रतिमा अंकित हैं। कुछ इतिहासकार इन प्रतिमाओं को भगवान आदिनाथ के पुत्र भरत, बाहुबली आदि संतानों की प्रतिमाएं भी बताते हैं। साथ ही अनेक शिलालेख इस चट्टान पर लिखे हैं। इस चट्टान को सिद्ध शिला भी कहते हैं। अखण्ड बागिलु (बिना जोड़ का द्वार) इसका निर्माण सन् 1130 में विष्णुवर्धन के सेनापति भरतेश्वर ने करवाया था। यह एक अखंड चट्टान (पहाड़) को काटकर बनवाया गया है, इसलिए इसके नाम के साथ अखण्ड जुड़ा हुआ है। इस द्वार के दाहिनी ओर भगवान बाहुबली की मूर्ति है और बायीं ओर भरत भगवान की। इसका सबसे प्रभावशाली अंग है गजलक्ष्मी, जो द्वार के ऊपर अंकित हैं। लक्ष्मी कमल पर पद्मासन में विराजित हैं और दोनों ओर से दो गजराज लक्ष्मीजी का क्षिरोदधि से अभिषेक करते दिखाए गए हैं। द्वार के दोनों ओर दो मंदिर बने हैं। सिद्धर बसदि यह बसदि छोटी है। इसमें सिद्ध भगवान की तीन फीट ऊंची प्रतिमा विराजमान है। प्रतिमा के दोनों ओर हाथ भर ऊंचे शिल्प स्तंभ हैं। इन पर अनेक मूर्तियां अंकित हैं। शिष्य-गुरु की मूर्ति बड़ी सुंदर है। गुल्लिका अज्जी बागिलु अखण्ड बागिलु के अलावा यह दूसरा दरवाजा है। इसका नाम पडऩे का कारण यह है कि इसकी दाहिनी ओर एक स्त्री का चित्र अंकित है। इसे गुल्लिका अज्जी का चित्र कहा जाता है। एक शिला लेख के अनुसार यह चित्र मल्लिसेटि की पुत्री का है, जिसने यहां समाधिमरण लिया था। गुल्लिका अज्जी की मूर्ति भगवान बाहुबली के ठीक सामने बाहर की तरफ एक बाई की मूर्ति है, वह गुल्लिका अज्जी है। इस मूर्ति की स्थापना चामुंडराय ने की थी। गुल्लिका अज्जी वह जागृत महिला थी, जिसने गृहस्थ जीवन में रहते हुए अपने व्यक्तित्व का सौरभ चतुर्दिक फैलाया। इस मूर्ति के ऊपरी भाग में यक्ष ब्रह्मदेव बैठे हैं। इसकी अहम् विशेषता यह है कि यहां से बाहुबली भगवान का मस्तक और चरण दोनों दिखाई देते हैं। गोम्मटस्वामी मंदिर विंध्यगिरि पर सबसे पहले चामुंडराय ने भगवान बाहुबली स्वामी की प्रतिमा का निर्माण करवाया। इसके पहले इस पहाड़ पर कोई बसदि या मूर्ति नहीं थी। कुछ समय बाद प्रतिमा की सुरक्षा की दृष्टि से भीतरी परकोटा, बरामदों की छत आदि कई निर्माण करवाए गए। बाहर से द्वार पर मण्डप बनाया गया। द्वार के सामने ध्वज स्तम्भ बना। गुल्लिका अज्जी बागिलु से होकर यहां प्रवेश करते हैं। इस क्रम में गोम्मटस्वामी के चरणों में शासन यक्षों पर चामरधारी इन्द्रों का निर्माण हुआ। दोनों ओर के बरामदों में छोटी वेदिकाएं बनाकर तीर्थंकर प्रतिमाएं विराजमान की गईं और कुछ ही समय पश्चात् पूरी परिक्रमा को चौबीस जिनालय के रूप में शृंगारित कर दिया गया। इस चौबीसी की अधिकांश प्रतिमाओं की ऊंचाई 4 फीट से 6 फीट तक की है। बीच में कुछ शासन देवी-देवता की प्रतिमाएं भी यहां विराजित हैं। इस प्रकार एक सादे परकोटों से लगभग चार सौ वर्ष में द्वारों, मण्डपों, गर्भगृहों और वेदिकाओं का एक बड़ा समूह बन गया, यही सब मिलकर अब गोम्मटस्वामी का मंदिर है। भगवान बाहुबली मंदिर की परिक्रमा प्रारंभ करने पर चंद्रप्रभु भगवान का मंदिर और परिक्रमा समाप्त करने पर भी चंद्रप्रभु भगवान का मंदिर है। परिक्रमा करते समय कुष्मांडणी देवी का मंदिर, आचार्य नेमीचंद्र पीठ एवं गणधर देव के चरण चिह्न भी आते हैं। चामुंडराय पहाड़ी बाहुबली भगवान के दायें हाथ पर परकोटे से बाहर एक संकरा मार्ग है। उस मार्ग से गमन करने हुए लगभग दो सौ मीटर की दूरी तय करने पर एक छोटी पहाड़ी है। इसे चामुंडराय पहाड़ी कहते हैं। सीढिय़ों का अभाव होने से इस पहाड़ी पर चढऩा अत्यंत कठिन था। मात्र बीस-पच्चीस फीट की ऊंचाई पर एक चरण पादुका नौ इंच लंबी है। कुछ इतिहासकारों का मत है कि अपने जीवनान्त में चामुंडराय ने जिन दीक्षा धारण कर इस स्थान पर कठोरतम साधना की थी। उनके स्वर्गारोहण के उपरान्त उनकी स्मृति में यह चरण पादुका इस स्थान पर विराजमान की गई। कुछ इतिहासकार इस तथ्य से सहमत नहीं हैं। उनका मानना है कि ये चरण बाहुबली की प्रतिमा स्थापित होने से पूर्व भी यहां थे।