गंगराज राचमल्ल की राजधानी तलवनपुर के महामंत्री और सेनाध्यक्ष चामुंडराय का श्रवणबेलगोला आगमन तीर्थ यात्रा के निमित्त हुआ। यात्रा का उदेश्य था, मां को पोदनपुर के बाहुबली के दर्शन करवाना। वह जानते थे कि दर्शन होना मुश्किल ही नहीं, नामुमकिन है फिर भी मां के प्रति प्रेम और गुरु आचार्य श्री आजिसेन की श्रद्धा ने ही उन्हें यात्रा का मार्गदर्शन किया। मां के प्रति इतनी आस्था का होना ही अपने आप में एक वीरता है। लक्ष्य था तो लक्ष्य पूरा होने का विश्वास भी था। कुछ न कुछ रास्ता अवश्य मिलेगा, यही दृढ़ इच्छा शक्ति थी। विश्वास था कि मां का संकल्प भी पूरा होगा, कैसे होगा, यह नहीं पता था पर होगा अवश्य। चामुंडराय यात्रा करते-करते कटप्रव वर्तमान का चंद्रगिरि पर्वत पर पहुंच गए, वहीं पर हुए आचार्य नेमिचन्द्र सिद्धांत चक्रवर्ती के दर्शन हुए। तभी चामुंडराय ने मां के संकल्प के बारे बताते हुए कहा कि जब तक पोदनपुर में बाहुबली के दर्शन नहीं होंगे, तब तक दूध नहीं पीने का नियम ले लिया है। गुरुदेव अब आप ही मार्गदर्शन करें। आचार्य ने कहा कि कोई चिंता की बात नहीं। मां का उद्देश्य अच्छा है। कोई ना कोई रास्ता अवश्य निकलेगा। एक रात्रि को चामुंडराय को स्वप्न आया। स्वप्न में नेमिनाथ भगवान की यक्षि कुष्मांडिनी देवी ने आकर कहा कि पोदनपुर के बाहुबली के दर्शन होना इस पंचम काल में संभव नहीं है किंतु तुम सब की भक्ति से सामने वाली पहाड़ी पर ही बाहुबली के दर्शन होंगे। तुम कल सुबह दक्षिणमुख खड़े होकर एक बाण चलाना, वह बाण जहां लगेगा, वहीं पर बाहुबली की प्रतिमा का निर्माण होगा। सुबह चामुंडराय ने भगवान की पूजा करने के बाद स्वप्न की बात मां को बताई। मां ने चामुंडराय से कहा, यही स्वप्न मुझे भी आया है। दोनों ने कहा, चलो स्वप्न की बात आचार्य श्री नेमिचन्द्र सिद्धांत चक्रवर्ती को बताते हैं, वही स्वप्न का फल बताएंगे। चामुंडराय अपनी मां के साथ आचार्य श्री के पास गए। आचार्य श्री के चेहरे पर भी मुस्कान थी। आचार्य श्री ने कहा, आज इतनी जल्दी कैसे? जब चामुंडराय ने अपने स्वप्न के बारे मे बताया, तब आचार्य श्री ने कहा, यही स्वप्न मुझे भी आया है। गुरुदेव इसका फल क्या होगा? कुष्माण्डनी देवी का स्वप्न में आने का कारण तो स्पष्ट है कि मां भगवान नेमिनाथ की प्रतिदिन पूजा-अर्चना करती हैं। आचार्य श्री ने कहा, इस वक्त यात्रा में भी भगवान नेमिनाथ की प्रतिमा साथ है। यह स्वप्न ही शुभ चिंतक है, तुम कल ही यह कार्य करो। अब तो मां को यहीं बाहुबली भगवान के दर्शन होंगे। प्रात:काल पूजा-पाठ कर आचार्य श्री की आज्ञा और आशीर्वाद लेकर बाण चलाया तो सामने वाली पहाड़ी पर वर्तमान का नाम विंध्यगिरि की एक विशाल चट्टान पर बाहुबली का रेखाचित्र दिखाई दिया। विंध्यगिरि पर इस दृश्य को देखने गंगराज वंश के सम्राट राजमल्ल परिवार सहित स्वयं श्रवणबेलग्ला पहुंचे और वहां पर बाहुबली के रेखाचित्र को देखकर कहा कि यह प्रतिमा अद्वितीय बननी चाहिए, जितना भी धन खर्च हो। सारा राज कोश चामुंडराय लिए खुला है। तुम धन की चिंता छोड़ मूर्ति निर्माण के कार्य में जुट जाओ। आचार्य नेमिचन्द्र, गंगवाडी के राजा राजमल्ल और चामुंडराय जब आपस में मूर्ति निर्माण की बात कर रहे थे, तब आचार्य नेमिचन्द्र ने कहा कि मूर्ति निर्माण से पहले चंद्रगिरि पहाड़ी पर एक नेमिनाथ भगवान का मन्दिर का निर्माण होना चाहिए। चामुंडराय कहा, जो आज्ञा गुरुवर । बाहुबली की प्रतिमा के निर्माण के पहले यह मन्दिर बनकर तैयार हो गया और उसी प्रतिष्ठा भी हो गई थी । इस प्रतिष्ठा में अजितसेन आचार्य, गंगवाडी राजमल्ल राजा और अनेक जन समूह ने भी भाग लिया था। आचार्य नेमिचन्द्र सिद्धांत चक्रवर्ती का आशीर्वाद लेकर चामुंडराय मूर्ति निर्माण के लिए शिल्पी की तलाश में स्वयं निकल गए। कुछ समय बाद एक शिल्पी मिला, उसे देखकर कोई नहीं कह सकता था कि यह एक शिल्पी हैै, वह भी कुशल। शिल्पी ने पूछा, आप कौन हैं? चामुंडराय ने कहा कि मैं चामुंडराय का सेवक हूं। उन्होंने एक कुशल शिल्पी की तलाश में मुझे भेजा है। चामुंडराय शिल्पी को लेकर वहां पहुंचा, जहां मूर्ति का निर्माण होना था। शिल्पी ने पूछा, कहां पर हैं चामुंडराय? तब चामुंडराय ने कहा, वह अभी कहीं बाहर गए हैं। मूर्ति निर्माण के बदले में पारिश्रमिक के बारे में शिल्पी ने कहा कि मूर्ति खोदते समय पत्थर का चूर्ण बनता है, उतना सोना लूंगा। तुम अपने स्वामी से पूछ लो। उससे कहा गया कि स्वामी तैयार हैं। शिल्पी ने अपना काम शुरू कर दिया। रात-दिन काम में लग गया। उसे न खाने का कोई होश था, न ही यह पता था कि कौन आ जा रहा है। जब मूर्ति का काम लगभग पूर्ण हो गया था, तब अचानक शिल्पी के हाथ ने काम करना बन्द कर दिया। उसने अपनी मां से पूछा तो मां ने कहा कि मूर्ति का निर्माण लोभ और नाम के लिए नहीं होता है। वह तो श्रद्धा का विषय है। तुमने स्वर्ण के लालच में यह काम किया है, उसी का फल है कि तुम्हारे हाथ ने काम करना बन्द कर दिया है। मां अब क्या करूं, तुम्हीं बताओ। इतने में यह बात चामुंडराय को यह बात पता चल गई। वह स्वयं शिल्पी के शिविर में चले गए। मां ने कहा कि आओ चामुंडराय। तब शिल्पी ने आश्चर्य से देखते हुए कहा कि क्या यही चामुंडराय हैं? मैं इतने दिनों से साथ में हूं, मुझे पता भी नहीं चला। चामुंडराय ने कहा कि किसी को घबराने की आवश्यकता नहीं है। हम शिल्पी को आचार्य श्री नेमिचन्द्र सिद्धांत चक्रवर्ती जी के पास लेकर चलते हैं। सब कुछ ठीक हो जाएगा। आचार्य श्री के पास ले जाकर जब पूरी बात उन्हें बताई तो आचार्य श्री ने कहा कि घबराने की आवश्यकता नहीं है। शिल्पी के लालच को दूर करने के लिए कुष्माण्डणी देवी ने यह सब खेल खेला है। तुम सुबह शिल्पी को साथ लेकर भगवान नेमिनाथ का अभिषेक-पूजन करो, सब ठीक होगा। सुबह अभिषेक करने के बाद आचार्य श्री ने शिल्पी को गंधोदक लगाया तो शिल्पी का हाथ ठीक हो गया। शिल्पी ने आचार्य श्री से क्षमा याचना की और अपने काम पर वापस चला गया। बाहुबली की मूर्ति निर्माण के बाद शिल्पी अपना नाम बताए बिना एक पत्र चामुंडराय के नाम पर लिखकर बाहुबली के चरणों में रख कर चला गया। चामुंडराय बाहुबली की प्रतिमा के पास आए तो वहां शिल्पी को नहीं पाकर इधर-उधर देखने लगे, तब उसे चरणों मे एक पत्र मिला। उसमें लिखा था कि मुझे खोजने की कोशिश मत करना। मैंने अपना काम पूरा कर दिया है। आप मेरी मां का ध्यान रखना। इतना पढ़ चामुंडराय रोने लगे। आचार्य श्री नेमिचन्द्र सिद्धांत चक्रवर्ती ने पूछा तो कहा कि शिल्पी हमें छोडक़र चला गया। आज तक हमें उसका नाम तक नहीं पता है। उसने कई बार पूछने पर भी नहीं बताया, जब भी पूछा, वह मौन रहा। देखो मूर्ति पर मेरा नाम लिख गया है और वह भी तीन भाषाओं में, कन्नड़, हिन्दी और मराठी। शिल्पी ने वाम हस्त की तर्जनी अंगुली छोटी कर दी क्योंकि मूर्ति इतनी सुन्दर है कि कहीं नजर ना लग जाए। आचार्य ने कहा कि अब तो शोक को छोड़ कर मूर्ति की प्रतिष्ठा और महामस्तकाभिषेक की तैयारी में लग जाओ। सब जगह सूचना भेजो। यह सूचना जब राजा राजमल्ल को पहुंची तो उन्होंने चामुंडराय के बेटे जिनदेवण को तैयारी के लिए भेज दिया और साथ ही राजा स्वयं अजितसेनाचार्य के संघ के साथ विहार कटप्रव की ओर कर दिया। आचार्य नेमिचन्द्र सिद्धंात चक्रवर्ती, आचार्य अजितसेन के सान्निध्य और चामुंडराय के मार्गदर्शन में मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा संपन्न हुई। प्रतिष्ठा के बाद बाहुबली भगवान का महामस्तकाभिषेक होने वाला था तो प्रथम जल का अभिषेक हुआ। उसके बाद दूध का अभिषेक होने लगा तो घुटने से नीचे दूध नहीं आ रहा था। जब एक बुढिय़ा नारियल की कटोरी में दूध लेकर आई, तब सब उसका मजाक उड़ाने लगे पर जब आचार्य श्री नेमिचन्द्र सिद्धांत चक्रवर्ती जी की दृष्टि उस पर पड़ी तो आचार्य ने कहा कि उसे जाने दो। उस बुढिय़ा के अभिषेक करते ही दूध की धार घुटने से नीचे बहने लगी। नीचे एक दूध का तालाब भर गया। जब चामुंडराय उस बुढिय़ा को देखने पहुंचे तो तब तक वह बुढिय़ा वहां से जा चुकी थी। चामुंडराय ने आचार्य श्री से पूछा कि वह बुढिय़ा कहां गई, तब आचार्य ने कहा कि वह कुष्माण्डनी देवी ही थीं, जो बुढिय़ा का रूप लेकर आई थीं। चामुंडराय! कहीं तुम्हें मूर्ति निर्माण करवाने के बाद यह अहंकार न जाए कि प्रथम महामस्तकाभिषेक मैंने किया है, इसलिए यह घटना घटी है। इसी स्मृति को बनाए रखने के लिए चामुंडराय ने गुल्लिका अज्जी की एक मूर्ति बाहुबली मन्दिर के मुख्यद्वार पर स्थापित करवा दी। विंध्यगिरि पर्वत पर ब्रह्मयक्ष, त्याग स्तम्भ और अखंड बागिलु द्वार का निर्माण भी चामुंडराय के द्वारा ही करवाया गया है। प्रतिष्ठा और महामस्तकाभिषेक के बाद चामुंडराय की मां कालादेवी और पत्नी अजितादेवी ने आचार्य श्री नेमिचन्द्र सिद्धांत चक्रवर्ती से आर्यिका दीक्षा धारण कर ली। आचार्य नेमिचन्द्र ने चामुंडराय को आदेश दिया कि तुम अब राज कार्य से मुक्त होकर शास्त्र लिखो। तब उन्होंने त्रिषष्ठि शलाका पुरुष चरित ग्रंथ लिखा। उसका बाद में नाम चामुंडराय पुराण रखा गया। उनके निमित्त से गोम्मटसार ग्रंथ की रचना भी वहीं पर हुई। इस बीच आचार्य अजितसेनाचार्य का समाधिमरण हो गया था। अब चामुंडराय ने आचार्य नेमिचन्द्र सिद्धांत चक्रवर्ती से कहा कि अब मुझे भी जिन दीक्षा धारण करनी है। अब मेरे सब काम पूरे हो गए हैं। आचार्य ने चामुंडराय को दीक्षा दे दी। अब चामुंडराय मुनि चामुंडराय हो गए और अपनी आत्मसाधना करते हुए वहीं चन्द्रगिरि पर्वत पर समाधिमरण कर आत्मकल्याण किया। चामुंडराय को अनेक उपाधियां भी समय पर मिली थीं। इनमें राय, वीर मार्तण्ड आदि शामिल थीं।